भाषा मोहब्बत की : कविता – अलका अग्रवाल सिगतिया
दोनों होंठ जब होते हैं स्पंदित,तभी तो उपजते हैं शब्दभावों को जब मिलता अभिव्यक्ति का संसारकायम होता, तभी तो संवाद।
Read moreदोनों होंठ जब होते हैं स्पंदित,तभी तो उपजते हैं शब्दभावों को जब मिलता अभिव्यक्ति का संसारकायम होता, तभी तो संवाद।
Read moreपहले कभी ऐतबार ना हुआ,चाहते हो मुझे इस क़दर टूटकर। ऐसा तो नहीं कि चाहा नहीं तुम्हेंकभी, तुम्हारी तरह डूबकर
Read moreउस शाम अपनी खिड़की से उसने ऐसे देखा कि जैसे मैं कोई दृश्य हूँ जो थोड़ी देर बाद ओझल हो
Read moreदूर कोई बांसुरी बजा रहा है और चल रहा हूं मैं कांधे पर लटका थैला पुस्तकों से भरा है सामने
Read moreऐसे मौसम में हूं कि अपने हाथों से अपना चेहरा नहीं छू सकता मिलना दूभर है साथियों से क्या किसी
Read moreअरण्य है और सन्नाटे में कूक रही है कोयल पसरी है जब घोर स्तब्धता जब बचा ही नहीं कोई अर्थ
Read moreहर लम्हा तुम हर सपना तुम हर फूल तुम तुम मेरी उम्मीद हो मेरी रातों में हो तुम तुम्हीं हो
Read moreसबसे पहले फूलों से सुगंध गायब हुई फिर गायब हुए तमाम हुनर फिर धीरे-धीरे दोस्तियां चली गयीं हम एक ऐसे
Read moreबहुत सारे भाषण हैं और एक मैं हूं जैसे बहुत सारा झाड़-झंखार है और धरती है जैसे बहुत सी प्यास
Read moreकई दरवाज़े बहुत देर से खुलते हैं कई खिड़कियों पर केवल ढलते सूरज की आती है धूप… कई पेड़ तेज़
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