मैं दास नहीं हूं – कविता: मनोज शर्मा
बहुत सारे भाषण हैं
और एक मैं हूं
जैसे बहुत सारा झाड़-झंखार है
और धरती है
जैसे बहुत सी प्यास है
और मीठा जल भी है,यहां-वहां
जैसे आकाश है फैला हुआ
और एक मोची
पूरे मनोयोग से जूता सी रहा है
मेरे बेटी ने पूछा
यह चुनाव क्या होता है…
बीवी ने जो फूलों की बेल बोयी थी
उस पर
पहले-पहल
दो फूल खिले थे
मुझे समझ नहीं आ रहा था
बेटी को क्या जवाब दूं…
मैंने घर में लगी बेल को छांटा-काटा
गमले में पानी दिया
पर,जैसे सूरज चढ़ रहा था
वैसे ही भाषण चढ़ रहे थे
महोदय!
यदि यह कोई प्रतियोगिता है
मैं, इससे बाहर होता हूं
यह मैं हूं,आप ही जैसा
तथा आज,अभी होता हूं
दासता से मुक्त।
– मनोज शर्मा
प्रतिरोध की कविता के जाने-माने कवि।
एक्टिविस्ट पत्रकार – अनुवादक – कवि – साहित्यकार।
इनके काव्य संग्रह हैं, यथार्थ के घेरे में, यकीन मानो मैं आऊंगा, बीता लौटता है और ऐसे समय में।
उद्भाव ना पल प्रतिपल आदि के कविता विशेषांक आदि में संपादकीय सहयोग।
इनकी कविताओं का अनुवाद डोंगरी पंजाबी मराठी अंग्रेजी आदि में।
संस्कृति मंच की स्थापना जम्मू में।
संप्रति नाबार्ड में उच्च पोस्ट पर।