भाषा मोहब्बत की : कविता – अलका अग्रवाल सिगतिया
दोनों होंठ जब होते हैं स्पंदित,
तभी तो उपजते हैं शब्द
भावों को जब मिलता अभिव्यक्ति का संसार
कायम होता, तभी तो संवाद।
मैं अकेली स्पंदित होंठ बनी रही
दूसरे होंठ तुम, हमेशा अकंपित रहे।
मेरे तुम्हारे रिश्ते की अनुभूति
कभी ले ही नहीं सकी भाषा का स्वरूप
मैं एक होठ, हमेशा दूसरे होठ के स्पर्श को लालायित
पर दूसरे होठ तुमने कभी स्पर्श के चेष्टा की ही नहीं
भाव को भाषा बनने ही ना दिया।
पहले अधर के कंपन में हैं जो संवेदनाएं
अभिसार, स्नेह और पवित्र भावनाएँ
क्यों तुम तक पहुँचती ही नहीं
मीरा, महादेवी की कविता की करुणा और समर्पण
गार्गी, मैत्रेयी सी विदुषियों के हृदय सा कंपन
आखिर क्यों नहीं होता, तुम्हारे हृदय में स्पंदन।
तुम अपनी जड़ता पे अड़े रहो,
अपने अहं की दीवार, से जड़े रहो
आखिर कब तक डिगोगे नहीं, हिलोगे नहीं।
मेरी मोहब्बत के अशआर, तुम्हें सुनाकर रहूंगी।
सुनो मेरे प्रिय दूसरे होंठ, चाहती हूं, तुम्हें ऐसे
सागर की लहरें चाहे चंदा की किरणों को जैसे
तुम्हारी बेरूखी मेरी ज़िद को ज्यादा परवान चढ़ाती है
तुम्हारे और क़रीब लाती है
आखिर कब तक डिगोगे नहीं हिलोगे नहीं।
मैं दीवानी मीरा हूँ, महादेवी के काव्य की पीड़ा हूँ।
तुम्हारे स्पंदन को जगाकर रहूंगी।
भावों को भाषा बनाकर रहूंगी।
मोहब्बत तुम्हारी पाकर रहूँगी।
-अलका अग्रवाल सिगतिया
कहानी, व्यंग्य, कविता तीनों विधाओं में लेखन।
‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते’ कहानी संग्रह महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के प्रथम पुरस्कार प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित।
निरंतरा गोदरेज़ फिल्म फेस्टिवल में प्रथम।
फिल्म अदृश्य को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड्स।
अनेकों पत्र पत्रिकाओं में लेख आदि प्रकाशित।फिल्म
टेलीविज़न धारावाहिकों व रेडियो के लिए लेखन।
अध्यक्ष राइटर्स व जर्नलिस्ट्स असोसिएशन महिला विंग मुंबई
निदेशक परसाईं मंच।
पुस्तकें – अदृश्य, मुर्दे इतिहास नहीं लिखते।
पुस्तकें संपादित – रंगक़लम, अप्रतिम भारत, मुंबई की हिन्दी कवयित्रियां आदि।
व्यंग्य संग्रह ‘मेरी-तेरी-उसकी भी’, कविता संग्रह ‘खिड़की एक नई सी’ प्रकाशनाधीन।
हरिशंकर परसाई पर लघु शोध प्रबंध। वर्तमान में शोध जारी।
होंठों का सांकेतिक प्रयोग, सीधी स्पष्ट बात, भाषा की सरलता और सुगमता तथा कविता से उद्बबोधित दृढ़ निश्चय..इन सबका सुंदर समागम किया है, अलका जी।