मील पत्थर बुला रहा है – कविता: मनोज शर्मा
सबसे पहले
फूलों से सुगंध गायब हुई
फिर गायब हुए तमाम हुनर
फिर धीरे-धीरे दोस्तियां चली गयीं
हम एक ऐसे समय में हैं
जहां हमारे उगाए पेड़-पौधे
झाड़-झंखार में परिवर्तित हो चुके हैं
जो हमारे सबसे प्यारे गीत रहे
उनकी धुनें बिगाड़ दी गयीं
वे कांटे हमने नहीं बोए थे
जो हमारे तलबों में धँसे
आजकल
आम के दरख्तों में अंबियाँ नहीं फूटतीं
घोंसले नहीं बनाती चिड़ियाएँ
हवाएँ मुकर गयीं हैं
मज़ा देखें कि यह कोई राजनीति नहीं है
वह जो मील का पत्थर है
मैं उसे छूना चाहता था
मैं तय करना चाहता था दूरियाँ
और ये सभी एक ही आकाश के नीचे घटित हो रहा था
मील पत्थर
किस्सों-कहानियों से परे होते हैं
आसमान में जो एक ध्रुवतारा है
दरअसल वह कई राहगीरों का शत्रु भी है
मुझे देर से पता चला
कि हर राही को अपना अलग ध्रुवतारा खोजना पड़ता है
इस भरे-भरे देश में
बहुत कुछ अधूरा है
इस समझे-समझे माहौल में
आकंठ लिपटी पीड़ा है
मैं
चलता गया मील पत्थर की ओर
इस बीच बाल पक गए
विचारधाराएँ उलझ गयीं
धरती का पानी सूखने लगा
बच्चे जवान हो गए
चलते-चलते
एक रात यूं लगा
चाँद बूढ़ा होने लगा है
सारे योद्धा लौट आए हैं
कैलेंडर फड़कना भूल गए हैं
क्या कभी पेड़ अपनी जड़ों से नाराज़ होते हैं
क्या वापिस आ रूठे दोस्त मनाए जा सकते हैं
क्या लौटती हैं छूटी रेलगाड़ियां
इस शापित दौर में
पृथ्वी को घूमना ही था
जितना भी धकेलो इच्छाओं को
उन्हें आना ही था
इस सभी के बावजूद
मुझे निरंतर आवाज़ दे रहा है
मील पत्थर
कह रहा है
इस समग्र ब्रह्मांड में
एक मैं हूँ, जो सपने बुनता है
तुम आओ
मेरे लोक में आओ
तुम्हारे तमाम रहस्य, तमाम गोपनियताएँ
यहाँ सुरक्षित रहेंगे
यहाँ गहन अंधकार में भी
हरेक के पास अपने जुगनू हैं
यहाँ साक्षात समय आपसे संवाद करता है
तथा सुरक्षित हैं समस्त वनस्पतियाँ
आओ न यार
मैं तुम्हें ताज़ा बुने गीत दूंगा
और दूंगा आँखें नाम करते सुच्चे किस्से
मैं तुम्हें अनारदाने की चटनी सी ख्वाहिशें दूंगा
खुले आकाश में मंडराती पतंगें
गहरी रात में महकती सोच दूंगा
और जैसी उमंग लिए खिला है
अमलतास
वैसी ही ललक भी दूंगा।
– मनोज शर्मा
प्रतिरोध की कविता के जाने-माने कवि।
एक्टिविस्ट पत्रकार – अनुवादक – कवि – साहित्यकार।
इनके काव्य संग्रह हैं, यथार्थ के घेरे में, यकीन मानो मैं आऊंगा, बीता लौटता है और ऐसे समय में।
उद्भाव ना पल प्रतिपल आदि के कविता विशेषांक आदि में संपादकीय सहयोग।
इनकी कविताओं का अनुवाद डोंगरी पंजाबी मराठी अंग्रेजी आदि में।
संस्कृति मंच की स्थापना जम्मू में।
संप्रति नाबार्ड में उच्च पोस्ट पर।