संध्या रियाज़ – कविताओं में खुद को तलाशती रूह

परिचय व कार्यक्षेत्र07 जनवरी 1964 को भोपाल, मध्यप्रदेश में जन्म हुआ। हिंदी साहित्य में स्नातक की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से

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दृश्य विधान – कविता: मनोज शर्मा

उस शाम अपनी खिड़की से उसने ऐसे देखा कि जैसे मैं कोई दृश्य हूँ जो थोड़ी देर बाद ओझल हो

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जब फूल खिलते हैं ढलान पर – कविता: मनोज शर्मा

दूर कोई बांसुरी बजा रहा है और चल रहा हूं मैं कांधे पर लटका थैला पुस्तकों से भरा है सामने

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ऐसे समय में – कविता: मनोज शर्मा

ऐसे मौसम में हूं कि अपने हाथों से अपना चेहरा नहीं छू सकता मिलना दूभर है साथियों से क्या किसी

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कुशल है कोयल – कविता: मनोज शर्मा

अरण्य है और सन्नाटे में कूक रही है कोयल पसरी है जब घोर स्तब्धता जब बचा ही नहीं कोई अर्थ

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तुम मेरी नदी हो! – कविता: मनोज शर्मा

हर लम्हा तुम हर सपना तुम हर फूल तुम तुम मेरी उम्मीद हो मेरी रातों में हो तुम तुम्हीं हो

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मील पत्थर बुला रहा है – कविता: मनोज शर्मा

सबसे पहले फूलों से सुगंध गायब हुई फिर गायब हुए तमाम हुनर फिर धीरे-धीरे दोस्तियां चली गयीं हम एक ऐसे

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मैं दास नहीं हूं – कविता: मनोज शर्मा

बहुत सारे भाषण हैं और एक मैं हूं जैसे बहुत सारा झाड़-झंखार है और धरती है जैसे बहुत सी प्यास

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हम जो जीते हैं… – कविता: मनोज शर्मा

कई दरवाज़े बहुत देर से खुलते हैं कई खिड़कियों पर केवल ढलते सूरज की आती है धूप… कई पेड़ तेज़

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जोरहाट – कविता: मनोज शर्मा

मिट्टी है चारों ओर जन–जन के हाथ में मिट्टी है यहाँ मिट्टी का ही मौसम है… दूर तक फैला है

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