स्वामी विवेकानंद के विचार: एक पंक्ति की शक्ति

  • अंत में प्रेम की ही विजय होती है।
  • आपस में न लड़ो। रुपये-पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो। हम तभी महान कार्य करेंगे। (वि.स.4/368)
  • ईर्ष्या तथा अंहकार को दूर कर दो। संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। (वि.स.4/280)
  • ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है।

उठो, जागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।

  • एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है – वह ये कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। (वि.स. 4/337)
  • एक-दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड़ है। किसी संगठन को नष्ट करने में इसका बहुत बडा हाथ है। (वि.स.4/315)
  • काम, क्रोध एंव लोभ — इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जायें और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। (वि.स. 4/338)
  • किसी बात से तुम उत्साहहीन न होना। जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? (वि.स. 4/320)
  • जब तक जीना, तब तक सीखना-अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। (वि.स.1/386)
  • जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।
  • जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी। (वि.स.4/368)
  • जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह, गुरू तथा ईश्वर में विश्वास – ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी – तब तक तुम्हें कोई दबा नहीं सकता। (वि.स.4/332)

जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत में सब कुछ कर सकता है। (वि.स.4/276)

  • जो प्रतीक्षा करता है, उसे सब चीज़े मिलती हैं। (वि.स. 4/387)
  • ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
  • तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी के सामने सिर मत झुकाओ।
  • तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
  • तुम यदि अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी किसी ने न डरो। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स. 4/320)
  • दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो।
  • धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। (वि.स.4/368)
  • पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। (वि.स.4/347)
  • पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो।

प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।

  • भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। (वि.स.4/351)
  • मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवंत काव्य है।
  • महाशक्ति का तुममें संचार होगा। कदापि भयभीत मत होना। पवित्र रहो, विश्वासी रहो, और आज्ञापालक रहो। (वि.स.4/361)
  • माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ। (वि.स.4/276)
  • मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है?
  • यही संसार है जिसमें तुम जिनको सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हे धोखा देंगे। (वि.स. 4/377)
  • श्रेयांसि बहुविघ्नानि – अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं।
  • सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। (वि.स.1/380)

सभी जीवंत ईश्वर हैं – इस भाव से सबको देखो।

  • साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना-यही एक मार्ग है। (वि.स.4/356)
  • हम दस ही क्यों न हों-दो क्यों न रहें-परवाह नहीं, परतुं जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों।
  • हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। (वि.स. 4/338)
  • हम यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकडों मित्र भेजेंगे। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। (वि.स.4/276)

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