दिल्ली कूच – किसान आंदोलन का तराना – विवेक अग्रवाल
खूंटी पर लटका संविधान,बचाना होगा हर इंसान,अब तो होगा दिल्ली कूच… दिल्ली कूच… जिसको समझा पानी ठहरा,तोड़ के निकलेगा चट्टान,अब
Read moreखूंटी पर लटका संविधान,बचाना होगा हर इंसान,अब तो होगा दिल्ली कूच… दिल्ली कूच… जिसको समझा पानी ठहरा,तोड़ के निकलेगा चट्टान,अब
Read moreउड़ जायेगा हंस अकेलाजग दर्शन का मेला। जैसे पात गिरे तरुवर केमिलना बहुत दुहेलान जानु किधर गिरेगालगया पवन का रेला।
Read moreकवयित्री लेखिका संध्या रियाज़ के लेखन पर कुछ वरिष्ठ लेखकों – साहित्यकारों की कलम चली है। उनके उद्गार जस के
Read moreअम्मा के जाने के बादउनकी पेटी से एक थैला मिला हैजिसमे मेरे बचपन का रेला मिला है एक चरखी एक
Read moreसड़क पर बोरा लिएकाग़ज़ बटोरता हुआ एक लड़काअपने बचपन को छिपाने की चेष्ठा करताअपने मन को मारे आँखों को ज़मीन
Read moreभूख क्यों लगती है आदमी को भीयाभूख ही क्यों लगती है आदमी को बहुत सारी अपनी परायीआकांक्षाये इक्छायेंऔरअहसास खाकर भीबराबर
Read moreबंद दरवाजों के अन्दरबंद हैं दो पीढ़ियाँ यादो पीढ़ियों को जोडती दो कड़ियाँसोचती सोचती … पोछती भीगी आँखों कोकुछ आसपास
Read moreभूलें तो कैसे भूलें हमज़मीं को कैसे भूले आसमांनदीं को कैसे किनारे भूलेंगेन भूलें मर भी जाएँ तब भीभूलें तो
Read moreमत छीनों उन चूड़ियों कोजिन्हें सुहाग की निशानी मानपहनाया था उसनेदेखो बिंदिया के हटते हीमाथे की सिलवटों नेउसका नसीब कह
Read moreमाँ का कोई सरनेम नहीं होतान माँ का कोई धर्म होता हैमाँ तो हमेशा माँ ही होती हैहर जाति धर्म
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