21वीं सदी के 251 अंतर्राष्ट्रीय व्यंग्यकारों में मुंबई के नौ और महाराष्ट्र के 6 व्यंग्यकार शामिल
मुंबई। 21वीं सदी के 251 अंतर्राष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकारों के ऐतिहासिक संकलन में मुंबई के नौ व्यंग्यकार सूर्यबाला, मनमोहन सरल, सूरज
अम्मा के जाने के बादउनकी पेटी से एक थैला मिला हैजिसमे मेरे बचपन का रेला मिला है एक चरखी एक
Read moreसड़क पर बोरा लिएकाग़ज़ बटोरता हुआ एक लड़काअपने बचपन को छिपाने की चेष्ठा करताअपने मन को मारे आँखों को ज़मीन
Read moreभूख क्यों लगती है आदमी को भीयाभूख ही क्यों लगती है आदमी को बहुत सारी अपनी परायीआकांक्षाये इक्छायेंऔरअहसास खाकर भीबराबर
Read moreबंद दरवाजों के अन्दरबंद हैं दो पीढ़ियाँ यादो पीढ़ियों को जोडती दो कड़ियाँसोचती सोचती … पोछती भीगी आँखों कोकुछ आसपास
Read moreभूलें तो कैसे भूलें हमज़मीं को कैसे भूले आसमांनदीं को कैसे किनारे भूलेंगेन भूलें मर भी जाएँ तब भीभूलें तो
Read moreमत छीनों उन चूड़ियों कोजिन्हें सुहाग की निशानी मानपहनाया था उसनेदेखो बिंदिया के हटते हीमाथे की सिलवटों नेउसका नसीब कह
Read moreमाँ का कोई सरनेम नहीं होतान माँ का कोई धर्म होता हैमाँ तो हमेशा माँ ही होती हैहर जाति धर्म
Read moreक्या तुम निभाओगे उन शब्दों के अर्थों कोजिसकी चादर ओढ़ कर अक्सर बदलता है रूपभ्रमित करता है सदा हृदय को
Read moreउन बच्चों को जानते हो क्या?जो मिटटी के खिलौनों से खेलते हैंकई कई महीनों और कई सालोंवाकई वो लोहे के
Read moreसुनो मन क्या तुम्हें उदास होने की बीमारी हैक्यूँ बेवझा उदास हो हो करघर की चार दीवारी से लड़ जाते
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