उन बच्चों को जानते हो क्या? : कविता – संध्या रियाज़

उन बच्चों को जानते हो क्या?
जो मिटटी के खिलौनों से खेलते हैं
कई कई महीनों और कई सालों
वाकई वो लोहे के चने चबाते हैं
टूट न जाए इस डर से डर जाते हैं
टूटा तो न जाने अब कब मिल पायेगा
खिलौना जो टूटा तो वो भी टूट जाते हैं
उन बच्चों को जानते हो क्या?
जो नयी किताब की खुशबू नहीं पहचाते
साल दर साल पुरानी किताबों से
पढ़ते पढ़ते आगे बढ़ते जाते हैं
जब कभी नयी किताब को हाथ लगाते
तो ख़ुशी से झूम जाते हैं
अगले साल कम से कम एक नयी किताब दिलाना
ये कहके अपने बाबा को मनाते है
क्या उन बच्चों को जानते हो?
जो पैदा होते ही छोड़ दिए जाते हैं
न खिलौना मिलता है उन्हें न किताबें
न घर की रोटी न माँ की गोद
वो तब ही जान जाते हैं
एक माँ ने जन्मा है उन्हें फेकने के लिए
वो बच्चे जीते जी लावारिश कहलाते हैं
क्या उन बच्चों को जानते हो ???
जो कभी कुछ भी नहीं मांगते है
कैसा खिलौना कैसी किताबें
और कैसे माँ बाप
जीवन में बस भूख से परेशान हो जाते हैं
जिसे रोटी चाहिए पानी चाहिए
वो बचपन से खुद अपनी रोटी कमाते हैं

कितने हुनारदार होते हैं वो बच्चे
कितने समझदार होते हैं वो बच्चे
पर वो अब बच्चे कहाँ है
क्या उन बिना बचपन वाले बच्चों को जानते हो?

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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