आत्मसात : कविता – संध्या रियाज़

क्या तुम निभाओगे उन शब्दों के अर्थों को
जिसकी चादर ओढ़ कर अक्सर बदलता है रूप
भ्रमित करता है सदा हृदय को मन
जताता है कि मैं ही सब कुछ हूँ
अतीत से वर्तमान तक भविष्य मेरा है।

परिस्थियों से परे घटती घटनाएं
झंझोर देती है अस्तित्व अपना
बार बार निरंतर होता प्रतिकार
विश्वास को डगमगाता छोड़ता है साथ
उस पल क्या तब भी साथ निभाओगे

विवस्ता अनेक स्तरों पर घेरती है हमें
घर की चार दीवारी की दुनिया के बाहर
दुनिया होती है और दुनिया के अंदर हम
अपने छोटे से घेरे में विवश घूमते हम
क्या तुम उस पल अस्तित्व से जुड़ जाओगे

प्रश्न का उत्तर प्रश्न से पूर्ण नहीं होता
इस छोर से उस छोर मान सम्मान से घिरे
अनेकों अवरोधों को करते हुए पार
क्या अपना पाओगे ? तो मैं हूँ
तुम से तुम तक प्रारम्भ से अंत तक
तुममे विलीन सदा निरंतर आत्मसात

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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