भूख : कविता – संध्या रियाज़

भूख क्यों लगती है आदमी को भी
या
भूख ही क्यों लगती है आदमी को

बहुत सारी अपनी परायी
आकांक्षाये इक्छायें
और
अहसास खाकर भी
बराबर पीड़ित प्रताड़ित करती
उफनती रहती है हरदम

आदमी कोल्हू के बैल सा
बहुत सी अच्छाईयों सच्चाईयों से
आँखें मूंदता
चाहि अनचाही बुराईयों में सनता
पट्टी बांधे आँखों पर
बिलकुल कोल्हू के बैल सा
घूमता रहता है घूमता रहता है
इस कायाकल्प मायायुक्त अँधेरी कोठारी में
जीवन के खूंटे से बंधा
चलता रहता है …चलता रहता है
पर भूख
तब भी नहीं मिटती
भूख को नहीं ख़त्म कर पाता आदमी

पर एक दिन
भूख खा लेती है आदमी को
विलीन होने के बाद भी
आत्मा भूखी रहती है

हाय
क्या यही नियति है
भूख !
क्यों लगती है आदमी को भी
या भूख ही क्यों लगती है आदमी को

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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