भूलें तो कैसे भूलें हम : कविता – संध्या रियाज़

भूलें तो कैसे भूलें हम
ज़मीं को कैसे भूले आसमां
नदीं को कैसे किनारे भूलेंगे
न भूलें मर भी जाएँ तब भी
भूलें तो कैसे भूलें हम
बिताये सालों साल दिन रात
बाँटी हमने दिल की बात
सुखों ने छोड़ा था जब साथ
वो तब भी संग हमारे थे
भूलें तो कैसे भूलें हम
रास्तों ने जब ना दिया था साथ
मंज़िलों की ना थी सौगात
कोई अपने न जब हमारे थे
दुखों के हम ही तो दो किनारे थे
भूले तो कैसे भूलें हम
सर पे छत हमारी वो था
भरोसा और सहारा वो था
उसका ही सर पे था हाथ
वो ही तो बस हमारा था
भूलें तो कैसे भूलें हम
सजाया था जो घर संसार
दिल के रंगों से थी बहार
मेरे आंसुओं को ख़ुशी देता था
वो मेरा था बस मेरा था
भूलें तो कैसे भूलें हम

बिना बोले वो एक दिन खो गया
न जाने मुझसे कैसे गुम्म हो गया
तरसती हैं आँखे उसे देखने को
रोता है दिल उसे छूने को
बिना कुछ कहे सब दे गया
भूलें तो कैसे भूलें हम
दिखता नहीं पर है आसपास
उसका वजूद रहता है साथ
दिल में मेरे अब भी वो जीता है
सांसें मेरे ही साथ साथ लेता है
भूलें तो कैसे भूलें हम

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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