एक छोटा लड़का : कविता – संध्या रियाज़
सड़क पर बोरा लिए
काग़ज़ बटोरता हुआ एक लड़का
अपने बचपन को छिपाने की चेष्ठा करता
अपने मन को मारे आँखों को ज़मीन टिकाता
इधर उधर ज़मीन पर नज़र दौडाता
चला जा रहा था।
सड़क पर सामने से आते हुए
उसके जैसे हमउम्र बच्चे
बचपन से भरे हंसते खिलखिलाते
साफ़ सुथरे उनके कपडे
और कपड़ों की जैसे उनके साफ़ खिले चेहरे
झुण्ड में स्कूल के लिए निकल रहे थे
लड़का उन्हें देख सकुचाता है
खुद को बोर के पीछे छिपाता है
और पसीने से भीगा चेहरा पोछ
आगे बढ़ जाता है
आगे खूबसूरत बाग़ रंग बिरंगे फूल
खिलौनों की दुकाने और दुकानों पर
अपना खिलौना चुनते बच्चे
माँ बाबा से अपना खिलौना लेने का हट कर रहे थे
लेकिन इस लड़के को कुछ भी नहीं दिख रहा था
या
वो देखना नहीं चाहता था
सिवाए कागज़ के टुकड़ों के
उसने कभी कोशिश भी नहीं की
कुछ भी देखने की
शायद मालूम होगा
चाहना और पाना दो अलग अलग बातें हैं
अपनी उम्र से भी बड़ा बना दिया था उसे
इन् रास्तों और बिखरे हुए कागजों ने
वो जानने लगा था शायद
उसकी चाह सडकों और कागजों तक ही सीमित है
ये चलते भिरते सपने और सपनों जैसे रंग भरे
बच्चे बनना उसकी कल्पना से भी परे था
शाम होने से पहले इस बोर को कागज़ से भरता है
बिकने पर 20 रुपये कमाता है
उससे दो रोटी और एक चाय खरीद
भूखे पेट को भर के सो जाता है
सुबह होते ही अपना बोरा लेके
फिर सड़कों पर जाता है
एक नयी आस के साथ
काश आज उसका बोरा जल्दी भर जाए
और आज रोटी खा के वो जल्दी सो जाए
देखेगा सपने उन सपने जैसे साफ़ साफ़ बच्चों के
जहाँ वो उनमे से एक होगा हाथ में बोरा नहीं बस्ता होगा
और बसते में माँ का दिया खाने एक डब्बा होगा
जिसमे पेटभर खाने को खाना होगा …
तभी एक डंडा उसकी पीठ पे पड़ता है
हबलदार उसे जगा के फुटपाथ से भगाता है
कब तक सोयेगा हीरों काम पे नहीं जाना हैं
संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/