फेसबुक मे पहले की प्रेम कविता : कविता – अलका अग्रवाल सिगतिया

कई बार अनुरोध किया था तुमने
दे दूं, तुम्हें अपनी कोई तस्वीर
ताकि जब मैं साथ नहीं तुम्हारे,
बातें कर सको, मेरी तस्वीर से

पर हर बार तुम अनुनय करते रहे,
मैं नहीं दी तुम्हें तस्वीर अपनी
फिर अचानक तुमने छोड़ दिया अपना अनुनय
प्रश्नों का सैलाब मन को आंदोलित कर गया।

तब माथे को चूमकर तुमने कहा था
क्या मेरी कल्पना को तुम रोक सकती हो,
तुम दूर हो ही कहा मुझसे
जब भी आखें बंद करता हूं,
अक्स बनकर दिल में तुम उतरती हो।

नि:शब्द मैं रह गई थी खड़ी।
एक दिन जब मैंने सोचा क्या दे दूं अपनी तस्वीर
मन के संशय को पढ़ कहा तुमने
पा ली है मैंने तस्वीर तुम्हारी
बेचैन हुई पूछा, कहाँ से, कैसे?
बहुत सताया था, तुमने, मुस्कुराहट के साथ
बात को टालना चाहा था।

पर मेरी जिद के आगे तुम्हारी एक ना चली
तब अपना वॉलेट निकालकर, दिखाई थी मुझे
किसी पेपर से काटकर
बहुत सलीके से रखी हुई मेरी तस्वीर

ढेरों रंग बिखर गए मन में
पर उन रंगों पर एक मटमैला रंग पसर गया,
आखिर क्यों किया मैंने तुम पर अविश्वास!

-अलका अग्रवाल सिगतिया
कहानी, व्यंग्य, कविता तीनों विधाओं में लेखन।
‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते’ कहानी संग्रह महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के प्रथम पुरस्कार प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित।
निरंतरा गोदरेज़ फिल्म फेस्टिवल में प्रथम।
फिल्म अदृश्य को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड्स।
अनेकों पत्र पत्रिकाओं में लेख आदि प्रकाशित।फिल्म
टेलीविज़न धारावाहिकों व रेडियो के लिए लेखन।
अध्यक्ष राइटर्स व जर्नलिस्ट्स असोसिएशन महिला विंग मुंबई
निदेशक परसाईं मंच।
पुस्तकें – अदृश्य, मुर्दे इतिहास नहीं लिखते।
पुस्तकें संपादित – रंगक़लम, अप्रतिम भारत, मुंबई की हिन्दी कवयित्रियां आदि।
व्यंग्य संग्रह ‘मेरी-तेरी-उसकी भी’, कविता संग्रह ‘खिड़की एक नई सी’ प्रकाशनाधीन।
हरिशंकर परसाई पर लघु शोध प्रबंध। वर्तमान में शोध जारी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *