रुके तो गए काम से!
पैदल चले जाएंगे अपनी मंज़िल को हम
कोरोना से डरे अगर तो भूखे मरेंगे हम
रोटी है बस अपनी सोच और नहीं कुछ चाहिए
गांव चलकर पहुंचेंगे तब मिट जाएंगे ग़म
कानून की गठरी में सत्ता उसकी क्या चिंता
मतलब निकल जाए तो गरीबी लगे है बम
भूख पेट की है ऐसी जो है लाइलाज
गरीब करेगा लाज तो खुद निकलेगा दम
मज़दूर नहीं मजबूर है इसमें है क्षमता
अमीर देकर दान मतलबी आंख दिखाए नम
गोर गरीबों की करता कोई नहीं परवाह
जीवन कंधे पर ढोता पर जोश न होता कम
पैरों में आए चाहे मोच अब नहीं रुकेंगे हम
ज़रूरत हमारी थोड़ी है पर सुविधाएं हैं कम
पहले पेट फ़िर देश है ये कोई नहीं समझे
एक जगह गर रुक जाएं तो सांसें जाएंगी थम
पैदल ही चले जाएंगे अपनी मंज़िल को हम
कोरोना से डरे अगर तो भूखे मरेंगे हम
– अवनींद्र आशुतोष
मुंबई के पत्रकार-लेखक-कवि