हमारा कल : कविता – संध्या रियाज़

मिट्टी के घड़े थे
सोंधा पानी देते थे
दिल सबके बड़े थे
सब सब से जुड़े थे

बगीचे सबके थे
फलों से जड़े थे
छतों पे सबकी
सबके हिस्से थे
घर की दीवारें थी
दीवारें जुड़ी थी
दरवाज़े हर घर थे
सबके सब खुले थे

बच्चे सब सबके थे
खानदान भी जुड़े थे
एक रोता सब रोते थे
एक हंसता सब हंसते थे

पुराने दिन हमारे थे
सोने से जड़े थे
सूखी रोटी खा के भी
मीठी नींद सोते थे।


संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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