जब जन्मे तो रोये थे क्या? : कविता – संध्या रियाज़

सुनो तुम जब जन्मे थे तो रोये थे क्या ?
हां तो मैं भी तो रोया था
लेकिन तुम्हें मिला सब कुछ माँ के साथ
मुझे तो माँ ने भी छोड़ा था
क्यूँ कि था मैं अनचाहा सा
बिन दुआओं के बेवजहा पैदा हुआ
कोई भी खुश न था मुझसे
गंदे से कपडे में बाँध
बिना मेरी शक्ल को देखे
बिना ममता का हाथ सर पे फेरे
माँ के शरीर से काट कर कचरे में फेका था

तुम? तुम पे खुशियों की थी बहार
माँ ने ममता के आंसुओं से धोया था
साफ़ सफ़ेद मखमल के कपड़े में लपेट
माँ ने अपने पास तुमको सुलाया था
रिश्ते कितने सारे पैदा होते ही मिल थे
जिन सबने तुम्हें अपनाया था
लेकिन ये सब ऐसा अलग क्यूँ हुआ
क्यों की हम थे तो माँ की औलादें
पर पिता का नाम मेरे साथ न था
भले ही मेरी माँ ने भी मुझे
ठीक तुम जैसे ही पेट से जन्मा था
तुम्हारे साथ सबके थे मैं अकेला था
माँ के बिना, ममता के बिना
ना जाने किस डस्टबीन में मुझको डाला था
अजीब समाज है माँ ने पाला माँ ने पैदा किया
मगर बाबा का नाम जीवन का आधार बना
बिन उनके नाम के मैं एक हराम था
हे राम ये कैसा यहाँ घोटाला था
सज़ा ना मिले मुझे न उसे जीवन भर
ज़िन्दगी के इस डर से पैदा करते ही
माँ ने मुझे खुद से जुदा कर डाला था
मैं अब भी उस ढेर में पड़ा रो रहा था
छोटे से कोमल दिमाग से सोच रहा था

मैं खुद से कहाँ इस दुनिया में आया था
अजब कहानी बनी थी मेरी
पिता के कारण ही जीवन को पाया था
आज पिता के कारण ही मौत मिली थी

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *