डर : कविता – संध्या रियाज़
मुझे बहुत डर लगता है
क्यों?
ना जाने
जो चीज़े जो बातें नहीं डरती
उनसे भी मुझे डर लगता है
सुबह के आते अखबार से
बदलती हुयी सरकार से
और
आदमी की बदलती चाल से भी
मुझे बहुत डर लगता है
ना जाने मेरे अन्दर के दस रसों में से
भयभीत रस ही क्यों रह गया है
शायद, इसीलिए
मुझे बहुत डर लगता है
ईश्वर का नाम भी लेते
इंसानों का मुंह देखना पड़ता है
मंदिर मज्जिद जाने से पहले
आगे पीछे देखना पड़ता है
अब तो
जानवरों के साथ साथ
इंसानों से भी डर लगता है
जाने कब होगा ख़त्म
मेरा ये डर, ये रस
लगता है शायद कभी नहीं
क्यों की भयभीत रस
फैलता जा रहा है
मेरे साथ साथ बहुतों को
या कहिये कुछ एक को छोड़ कर
सभी को
अपने रस में डुबोता जा रहा है
मुझे डर लगता है उस दिन से
जब सब डरने लगेंगे
एक दुसरे से
रोटी से ..पानी से
और
अपने ही जिस्म के हिस्सों से
उफ़!
क्या होगा तब
देखा कल्पना भी डराती है मुझे
वाकई
मुझे बहुत डर लगता है
कविता – मौत – संध्या रियाज
मौत तू क्यों नहीं आती तब
जब
होती है मेरे पास माँ की गोद, घर की छत
और अपनों के हाथ
मौत तू भी आम इंसानों की तरह
बहक गयी है क्या
या तुझे भी गुमराह कर दिया है किसी ने
कुछ ही दिन पले मासूम बच्चों को
क्यों डरा देती है
हंसते खिलखिलाते चेहरों को
दहशत से भर देती है
आतंक और खौफ भर देती है सभी के दिलों में
क्या हो गया है तुझे ?
मौत ! अब तुझे वीरान इलाके बहता खून
चमकते खंजर क्यों पसंद आने लगे
तू क्यों दहकते हुए अंगारों
चीखती हुयी आवाजों
जलते हुए घरों
और मकानों में भटकने लगी
ऐ मौत ! तू अब सफ़ेद चादर, सूखी लकड़ी
या गीली मिटटी भी नहीं दे पाती
आखिर क्यों क्या हुआ है ?
किसने सताकर तुझमें यूँ भर दिया जूनून
मौत तो थी ख़ामोशी, चिंतन, एक सन्नाटा
एक रहस्या
लेकिन आज
तू सिर्फ काग़ज़ों की सुर्खियाँ बनती है
जहाँ आंकड़ों में पाया जाता है तुझे
हां डरी हुयी सहमी हुयी मौत तुझे
और दे दिया जाता है नाम
बेमौत का
संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/