मैं एक औरत हूँ : कविता – संध्या रियाज़

तुमने कहा था हम एक हैं
हर बंधन से परे
बनाये हुए नियमों से दूर
विश्वास और प्यार की डोर से बंधे
साथ जीने मरने के वादों के संग
तुमने कहा था माना हमने
हम एक हो गये…

तुमने लाल चुनर के साथ
उड़ा दी घर की जिम्मेदारियां
घूंघट से छिपा दी मेरी पहचान
मेरा नाम और मेरे अरमान
माँ बाप की सीख देहरी पार छूट गयी
और एक होते ही मैं,
खुद से खो गई…

तुमने फिर अपने घर में पैदा किया मुझे
सीखना थे अब तुम्हारे घर के संस्कार
तुमसे जुड़ी परंपरा के आचार विचार
घर के हर रिश्ते को बाँधना था मेरा कर्म
हर कसौटी पे खरा उतारना था मेरा धर्म
तुम दूर खड़े आंकते रहे
मेरा परिणाम…

तुमने जुड़ते ही कर दिया था मुझको अलग
भागना चाहती हूँ मैं हर दिन की परीक्षा से अब
ले लो वापिस ये बन्धनों से बंधा अपना प्यार
ये सारे अधिकार जो मेरे लिए कर्त्तव्य हैं
मुक्त होना चाहती हूँ अब इस भ्रमित रूप से
तुमने कहा था तुम हो पर
तुम कहाँ हो…

तुमने न जाने कितने बदले अपने किरदार
हर रिश्ते से बंधी मैं पर तुमसे छूट गई
तुम मेरे कभी थे ही नहीं पूर्णता के साथ
मैं अब तौलने और परखने की वस्तु नहीं हूँ
मैं अकेली तुम से अलग पर फिर भी पूर्ण हूँ
कह दो सबसे मैं कुछ भी नहीं किसी की
मैं बस एक औरत हूँ… बस एक औरत…

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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