नींद न जाने अब क्यों नहीं आती : कविता – संध्या रियाज़

नींद न जाने अब क्यों नहीं आती
आती थी तब जब जागके पढ़ने की ज़रूरत होती थी
तब भी आती थी जब अम्मा पैर दबाने को कहती थीं
तब तो और तेज़ आती थी
जब स्कूल जाने को अम्मा सुबह जगाती थी

पर धीरे धीरे नींद से नाता टूटता गया
कुछ बनने का भूत सवार हुआ तब
जब अपना नया काम शुरु हुआ तब
जब ज़िम्मेदारियों का चादर ओढा तब
नींद आँखों से न जाने कहाँ कूद के भागी थी
नींद तब भी कभी कभी आ ही जाती थी
जब घर में हमसे कोई बड़ा होता था
पर एक एक करके सभी बड़े जुदा हो गए
तब से नींद नींद सी कभी नहीं आती है
गुज़रे हुए पल कई कई हिस्सों में याद आते हैं
अब तो ये भी समय आया जब
नींद की गोलियां खा के भी सो नहीं पाते
नींद को बुलाते बुलाते
रात एक बीती रात हो जाती है
अब तो नींद से नाता तोड़े सालों हो गए
काश अम्मा होती तो मीठी नींद भी आती
काश कोई बड़ा घर में होता तो तब भी सो जाते
लेकिन काश हमेशा की तरह काश ही रह गया
अब पता लग गया की नींद तभी आती है
जब हम उसे बुलाने की कोशिश नहीं करते
आदत हो गयी अब अंधेरे को खुली आँखों से तकने की
सन्नाटे में दूर से आती आवाज़ों को सुनने की
थकता है दिमाग पर नींद तब भी नहीं आती
लेकिन एक दिन थक के हम सो जाते है
वो भी इतनी गहरी नींद में
की कोई भी हमें जगा नहीं पाता।
शायद तब अम्मा होती हैं हमारे साथ
कुछ अपने भी होते होंगे ख़ास ख़ास
जो बरसों से परेशां हमारी आँखों को सुला देते हैं
लोग समझते है कि नींद में लोग दुनिया छोड़ जाते हैं।
पर सच में उस दिन हम बड़ी मीठी नींद सो जाते हैं।

संध्या रियाज़ कवयित्री व लेखिका हैं।
संप्रति: आईडिएशन एंड डेवलमेंट हेड, क्रिएटिव आई लि.
संपर्क: 09821893069, sandhya.riaz@gmail.com
पूरे परिचय हेतु क्लिक करें – https://www.anoothaindia.com/profile-sandhya-riyaz/

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