पड़ोसी के कुत्ते – व्यंग्य: विवेक रंजन श्रीवास्तव
हमारे पड़ोसी ने तरह तरह के कुत्ते पाल रखे हैं। फिल्म शोले में बसंती को कुत्ते के सामने नाचने से मना क्या किया गया, पड़ोसी के कुत्तों ने इसे पर्सनली ले लिया लगता है। उनकी वफादारी खुंखारी में तब्दील हो गई है।
पड़ोसी के कुछ कुत्ते पामेरियन हैं, कुछ ऊंचे पूरे हांटर हैं कुछ दुमकटे डाबरमैन है, तो कुछ जंगली शिकारी खुंखार कुत्ते हैं। पामेरियन भौंकने का काम करते हैं, वे पड़ोसी के पूरे घर में खुले आम घूमते रहते हैं । पड़ोसी उन्हें पुचकारता, दुलारता रहता है। ये पामेरियन कुत्ते अपने मास्टरमाइंड से साथी खुंखार कुत्तों को आस पास के घरो में भेज कर कुत्तापन फैलाने के प्लान बनाते रहते हैं।
पड़ोसी के कुत्तों को अपने कुत्तेपन पर बड़ा गर्व है। वे समझते हैं कि इस दुनिया में सबको बस कुत्ता ही होना चाहिये। वे बाकी सबको काट खाना चाहते हैं। और इसे धार्मिक काम मानते हैं। ये कुत्ते योजना बना कर जगह-जगह बेवजह हमले करते रहते हैं। इस हद तक कि इसमें वे स्वयं अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। वे बच्चों या औरतों तक को काटने से भी नही हिचकते। वे पड़ोसी के बाड़े से निकल कर आस-पास चोरी-छिपे घुस जाते हैं और निर्दोष पड़ोसियो को केवल इसलिये काट खाते हैं क्योकि वे उनकी प्रजाति के नहीं हैं।
पड़ोसी इन कुत्तों की परवरिश पर बहुत सारा खर्च करता है, वह इन्हें पालने के लिये लोगो से उधार लेने तक से नही हिचकिचाता। घरवालों के रहन-सहन में कटौती करके भी वह इन खुंखार कुत्तों के दांत और नाखून पैने करता रहता है, पर पड़ोसी ने इन कुत्तों के लिये कभी जंजीर नही खरीदी। उसने ये कुत्ते खुलेआम भौंकने, निर्दोष लोगों को दौड़ाने, काटने के लिये स्वतंत्र छोड़ रखे हैं।
पड़ोसी के चौकीदार उसके इन खुंखार कुत्तों की विभिन्न टोलियों के लिये तमाम इंतजाम में लगे रहते हैं। उनके रहने, खाने, सुरक्षा के इंतजाम और इन कुत्तों को दूसरों से छिपाने के इंतजाम भी ये वर्दी वाले चौकीदार ही करते हैं।
इन कुत्तों के असाधारण खर्च जुटाने के लिये पड़ोसी हर नैतिक – अनैतिक तरीके से धन कमाने से बाज नही आता। इसके लिये पड़ोसी चुपके से ड्रग्स का धंधा करने से भी नही डरता। जब भी ये कुत्ते लोगों पर चोरी-छिपे खतरनाक हमले करते हैं, तो पड़ोसी चिल्ला-चिल्ला कर उनका हर स्तर पर बचाव करता है।
सामाजिक बैठकों में पड़ोसी यहां तक कह डालता है कि ये कुत्ते तो उसके हैं ही नहीं। वह स्वयं कुत्ता पीड़ित है। पड़ोसी के ये कुत्ते दूसरे देशो के देशी कुत्तों को अपने गुटों में शामिल करने के लिये उन्हें कुत्तेपन का हवाला देकर बरगलाते रहते हैं।
जब कभी शहर में कहीं भले लोगों का कोई जमावड़ा होता है, पार्टी होती है, तो पड़ोसी के तरह-तरह के कुत्तों की चर्चा होती है। लोग इन कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने की बातें करते हैं। लोगों के समूह और अलग-अलग क्लब मेरे पड़ोसी को समझाने के हर संभवयत्न कर चुके हैं, पर पड़ोसी है कि मानता ही नहीं।
इन कुत्तों से अपने और सबके बचाव के लिये लोगों को ढेर सी व्यवस्था और ढेर सा खर्च, व्यर्थ ही करना पड़ रहा है। घरों की सीमाओं पर कंटीले तार लगवाने पड़ रहे हैं, कुत्तों की सांकेतिक भाषा समझने के लिये इंटरसेप्टर लगवाने पड़े हैं। अपने खुफिया तंत्र को बढ़ाना पड़ा है, जिससे कुत्तों के हमलो के प्लान पहले ही पता किये जा सकें। और यदि ये कुत्ते हमला कर ही दें तो बचाव के उपायों की मॉक ड्रिल तक करने पर सब विवश हैं।
हर कोई सहमा हुआ है। जाने कब किस जगह किस स्कूल या कालेज, किस मंदिर, किस गिरजाघर, किस हवाई अड्डे या रेल्वेस्टेशन, किस बाजार में ये कुत्ते किस तरह से हमला कर दें, कोई नही जानता।
सारी सभ्यता, जीवन बीमा की सारी योजनायें एक मात्र सिद्धांत पर टिकी हुई हैं कि कोई मरना नही चाहता, सब जिंदगी चाहते हैं, पर इस मूल मानवीय मंत्र को ही इन कुत्तों ने दरकिनार कर दिया है। इनका इतना ब्रेन वाश किया जाता है कि अपने कुत्तेपन के लिये ये मरने तक को तैयार रहते हैं।
इस पराकाष्ठा से निजात कैसे पाई जावे, यह सोचने में सारे बुद्धिजीवी लगे हुये हैं। टीवी चैनलों पर इस मुद्दे पर बहसें हो रही हैं। कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी बनी हुई है।
विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए -1, विद्युत मण्डल कालोनी
रामपुर, जबलपुर
Photo Courtesy: Mark Galer on Unsplash
विवेक रंजन श्रीवास्तव का एक व्यंग्य पाठ व बातचीत सुनें नीचे दी लिंक पर
आभार आप का