स्वामी विवेकानंद के विचार: सामाजिक परिवर्तन

  • ‘साहसी’ शब्द और उससे अधिक ‘साहसी’ कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार-बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अंतर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. 4/408)
  • शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है, इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। (वि.स.4/319)
  • लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। (वि.स.6/88)
  • शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है। (वि.स. 4/369)

सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।

  • सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है। धीरे-धीरे सब होगा।
  • मैं अपने आन्दोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो। कपटी कार्यों से सामना पडने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। (वि.स. 4/377)
  • परिश्रम करना है, कठिन परिश्रम्! काम कांचन के चक्कर में अपने-आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाएं, यह निश्चय ही कठिन काम है। अनंत काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। (वि.स. 4/387)
  • प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होंने अपने बंधन तोड डाले हैं, जिन्होने अनंत का स्पर्श कर लिया है, जिनका चित्र ब्रह्मानुसंधान में लीन है, जो न धन की चिन्ता करते हैं, न बल की, न नाम की… और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। (वि.स.4/336)
  • बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है। तुम लोग कमर कस कर कार्य में जुट जाओ। हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारंभ ही है।

भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

  • गंभीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो। साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। (वि.स.4/318)
  • जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे।
  • अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शांति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शांति भंग करता है। (वि.स. 4/381)
  • किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो। यह दुनिया भयानक है। किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं। इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बना कर कार्य में जुट जाओ। (विवेकानन्द साहित्य खण्ड-4, पन्ना-315) (4/315)
  • जो सबका दास होता है, वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच-नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। (वि.स. 4/403)
  • तुम यदि स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले ‘अहं’ का नाश कर डालो। (वि.स.4/285)
  • तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपने उध्दार में लगे हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे, न दूसरों का। ऐसा शोर-गुल मचाओ कि उसकी आवाज़ दुनिया के कोने-कोने में फैल जाए। (वि.स. 4/387)

दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक देवल, एक ही आत्मा, संसार के बन्धनों को तोड़ कर मुक्त हो सके, तो हमने अपना काम कर लिया। (वि.स. 4/337)

  • धीरज रखो। काम तुम्हारी आशा से बहुत आगे जाएगा। हर काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैंकडो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। (वि.स. 4/387)
  • न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुध्द जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी। (वि.स.4/336)
  • पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। यदि तुम किसी के प्रति, अन्य की अपेक्षा, अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो, उसी से भविष्य में कलह का बिजारोपण होगा। (वि.स.4/312)

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