सफ़र – कविता: मनोज शर्मा

जितना जिया सही शर्तों पर
यही सुखद है…

उम्मीदों पर लगाईं मोहरें
उमंगों को दिए नए चेहरे
रहा बहुत सा अनसुलझा भी
रहा बहुतेरा अनकहा भी
पर क्या कम है…

जिनको चुना, उन्हें पाया है
साथी मेरे, हमसाया हैं!

– मनोज शर्मा
प्रतिरोध की कविता के जाने-माने कवि।
एक्टिविस्ट पत्रकार – अनुवादक – कवि – साहित्यकार।
इनके काव्य संग्रह हैं, यथार्थ के घेरे में, यकीन मानो मैं आऊंगा, बीता लौटता है और ऐसे समय में।
उद्भाव ना पल प्रतिपल आदि के कविता विशेषांक आदि में संपादकीय सहयोग।
इनकी कविताओं का अनुवाद डोंगरी पंजाबी मराठी अंग्रेजी आदि में।
संस्कृति मंच की स्थापना जम्मू में।
संप्रति नाबार्ड में उच्च पोस्ट पर।

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