हम अलग हैं तुम अलग हो : कविता – संध्या रियाज़
अलग अलग मंदिर मस्जिद हैंअलग अलग हैं पहनावेअलग अलग अपनी बोली हैंअलग अलग है पूजा की रीत कुंए अलग बांटे
Read moreअलग अलग मंदिर मस्जिद हैंअलग अलग हैं पहनावेअलग अलग अपनी बोली हैंअलग अलग है पूजा की रीत कुंए अलग बांटे
Read moreमिट्टी के घड़े थेसोंधा पानी देते थेदिल सबके बड़े थेसब सब से जुड़े थे बगीचे सबके थेफलों से जड़े थेछतों
Read moreमुझे बहुत डर लगता हैक्यों?ना जानेजो चीज़े जो बातें नहीं डरतीउनसे भी मुझे डर लगता है सुबह के आते अखबार
Read moreबहुत समय पुरानी ये बात हैजब आता था हँसाना मुझे हर बात परऔर हर चीज़ लगती थी सुन्दरइधर उधर घुमते
Read moreहमारे यहाँ गाल बजाने की आदत है, जो बजा लेता है वह बाधाएं पार कर जाता है और जो नहीं
Read moreसुबह का समय था। सबके लिए सुबह का समय नित्यकर्म का होता है। कुछ के लिए प्रतिदिन प्रभु स्मरण का
Read moreदोनों होंठ जब होते हैं स्पंदित,तभी तो उपजते हैं शब्दभावों को जब मिलता अभिव्यक्ति का संसारकायम होता, तभी तो संवाद।
Read moreपहले कभी ऐतबार ना हुआ,चाहते हो मुझे इस क़दर टूटकर। ऐसा तो नहीं कि चाहा नहीं तुम्हेंकभी, तुम्हारी तरह डूबकर
Read moreसुधीजनों आज आप सब से एक जरूरी बात करनी है, पर उसकी भूमिका कुछ यूं बनती है। आप सब भी
Read moreउस रात मैं टीवी सीरियल महाभारत में कृष्ण -अर्जुन संवाद का एपीसोड देख सोया था। अचानक एक दिव्य वाणी सुनी,
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