जब जन्मे तो रोये थे क्या? : कविता – संध्या रियाज़
सुनो तुम जब जन्मे थे तो रोये थे क्या ?हां तो मैं भी तो रोया थालेकिन तुम्हें मिला सब कुछ
Read moreसुनो तुम जब जन्मे थे तो रोये थे क्या ?हां तो मैं भी तो रोया थालेकिन तुम्हें मिला सब कुछ
Read moreतुमने कहा था हम एक हैंहर बंधन से परेबनाये हुए नियमों से दूरविश्वास और प्यार की डोर से बंधेसाथ जीने
Read moreतुम विश्वास हो तोदेदो मुझे कुछ अंश कीतुम से जुड़ केस्थिर हो सकूं तुम सम्मान हो तोदेदो थोड़ा मुझे भी
Read moreनींद न जाने अब क्यों नहीं आतीआती थी तब जब जागके पढ़ने की ज़रूरत होती थीतब भी आती थी जब
Read moreबुलंदी छूना तो छूनाछू के लौट आना तुमआसमान से टूटे तारेअक्सर गुम हो जाते हैं। उड़ना भला लगता हैपरिंदों का
Read moreअलग अलग मंदिर मस्जिद हैंअलग अलग हैं पहनावेअलग अलग अपनी बोली हैंअलग अलग है पूजा की रीत कुंए अलग बांटे
Read moreमिट्टी के घड़े थेसोंधा पानी देते थेदिल सबके बड़े थेसब सब से जुड़े थे बगीचे सबके थेफलों से जड़े थेछतों
Read moreमुझे बहुत डर लगता हैक्यों?ना जानेजो चीज़े जो बातें नहीं डरतीउनसे भी मुझे डर लगता है सुबह के आते अखबार
Read moreबहुत समय पुरानी ये बात हैजब आता था हँसाना मुझे हर बात परऔर हर चीज़ लगती थी सुन्दरइधर उधर घुमते
Read moreपरिचय व कार्यक्षेत्र07 जनवरी 1964 को भोपाल, मध्यप्रदेश में जन्म हुआ। हिंदी साहित्य में स्नातक की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से
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