मोहब्बत क्यूं जताते हो : कविता – अलका अग्रवाल सिगतिया

कहा तुमने करते हो बेपनाह मोहब्बत मुझसे
मैंने मान लिया, करते हो बेपनाह मोहब्बत मुझसे
जानते थे कि दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है
पर मान लिया सच ,मैंने तुम्हारे झूठ को
क्योंकि मैं करती रही सच्ची मोहब्बते तुमसे।

तुम अचानक प्रेमी से पुरुष बन जाते हो।
मेरे सच्चे इ़श्क़ का अपमान करते जाते हो।
कभी भावनाओं के, कभी शरीर के स्तर पर
मुझको छलते जाते हो।

तुम्हारे हृदय के किसी भी कोने में
मेरी निर्धारित जगह है नहीं
इमरजेंसी सुविधा की तरह
मुझे यूज़’ करते जाते हो।

जानते भी खुद को विरक्त कर नहीं पाती
मीठी बातों से मन को बरगला देते हो
पता है तुम्हें मैं मोहब्बत सच्ची करती हूं
इसलिए भावनाओं से मेरी खेल लेते हो।

बहकर प्यार में, मैं बहक जाती हूं
थोड़ा इतराने लगती हूं जब
कजरारी आंखों से बहाके आंसू
कहकहा तुम लगाते हो
दिल जलाने वाली बातें कह देते हो

जैसे ही निर्णय मेरा होता,
बस अब और नहीं,
तुम अचानक `ट्रांसफार्म” हो जाते हो
जाने लगती मैं ,जो दूर
मोहब्बत फिर जताते हो।

कभी पत्नी, कभी प्रेमिका को छलते हो
इश्क की बिसातों पर चालें नई सी चलते हो

सुनो पुरूष प्रेमी, बहुत हुआ,
मैं यानी, आमिसारिका, यानी स्त्री
समझ चुकी तुम्हारी चालों को, मोहब्बत के छलावों को
अब पर्दाफाश करूंगी मैं, छलावों का, मोहब्बत के झूठे वादों का

क्योंकि
तुम भावनाओं का मोल आंक ना पाओगे
सच्ची मोहब्बत की गहराई में कभी उतर न पाओगे।

-अलका अग्रवाल सिगतिया
कहानी, व्यंग्य, कविता तीनों विधाओं में लेखन।
‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते’ कहानी संग्रह महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के प्रथम पुरस्कार प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित।
निरंतरा गोदरेज़ फिल्म फेस्टिवल में प्रथम।
फिल्म अदृश्य को राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड्स।
अनेकों पत्र पत्रिकाओं में लेख आदि प्रकाशित।फिल्म
टेलीविज़न धारावाहिकों व रेडियो के लिए लेखन।
अध्यक्ष राइटर्स व जर्नलिस्ट्स असोसिएशन महिला विंग मुंबई
निदेशक परसाईं मंच।
पुस्तकें – अदृश्य, मुर्दे इतिहास नहीं लिखते।
पुस्तकें संपादित – रंगक़लम, अप्रतिम भारत, मुंबई की हिन्दी कवयित्रियां आदि।
व्यंग्य संग्रह ‘मेरी-तेरी-उसकी भी’, कविता संग्रह ‘खिड़की एक नई सी’ प्रकाशनाधीन।
हरिशंकर परसाई पर लघु शोध प्रबंध। वर्तमान में शोध जारी।

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